गजल -शालिनी शर्मा

नमस्कार दोस्तों 
मैं फिर हाजिर  हूँ आपके लिए नयी रचना लेकर कोई लेखक तभी सफल है जब वो पाठको के दिल में उतर पा रहा है मेरा प्रयास है अच्छा लिखूं पर कहां तक सफल हूँ आप बताइये कमेन्ट करके
आपके कमैन्ट के इन्तजार में 
212 212 212 212

बेवफा मैं नही,आजमा लो मुझे
प्यार का गीत हूँ,गुनगुना लो मुझे

फूल बन के सदा मैं महकती रहूँ
राह के,कंटको से बचा लो मुझे

तुम रहो तुम नही मैं रहूं मैं नही
सांस के हार का नग बना लो मुझे

कांच के जैसा तन,मन भी है कांच का
टूट जाऊं न गिर के  उठा लो मुझे

जिन्दगी में मुझे तम सुहाते नही
रोशनी के दिये सा जला लो मुझे

तेरा साया हूं मैं साथ में हूं सदा
हमसफर जिन्दगी का बना लो मुझे
प्यार का गीत---------------
                  शालिनी शर्मा

पैरों के छाले  देख  के  रुक जायें, क्या करें
चलते  हुए  राहों में जो थक जायें, क्या करें
मन्जिल  बड़ी  है  दूर और  राहों  में शूल  हैं
क्या जिन्दगी से हार के झुक जायें,क्या करें
                       शालिनी शर्मा


गीतिका
पी रहे हैं जहर,पर मरेगें नही
खूब जी भर सता,पर डरेगें नही

जिन्दगी तू हमें प्यार बेशक न कर
तुझसे कम प्यार अपना करेगें नही

जो न बन पाये गंगा का शीतल सा जल
आंसू बन के नयन से बहेगें नही

बूंद बारिश की जो हम न बन पाये तो
फटता बादल भी बन कर गिरेगें नही

बीज बन कर अगर अकुंरित न हुए
पर धरा को भी बंजर करेगें नही

फूल, खुश्बू ,चमन गर नही बन सके
बन के कंटक किसी को चुभेगें नही

बच्चो के जैसे मासूम गर न बने
बन के खंजर किसी के घुसेगें नही
                       शालिनी शर्मा



दोहा गीतिका
मात्राओं का छन्द का,नही जिन्हे है ज्ञान
जो बिल्कुल काबिल नही,वो पाते सम्मान

पैसा दे जो पा रहे,यश,ख्याति,और नाम 
मंचो पर कहला रहे,ऐसे भाट महान

पैसा तय करता यहां,कैसा हो व्यवहार
निर्धन को ठोकर मिले,धनवानो को मान

फन,का कौशल शिल्प का,मिले न कुछ भी दाम
असली नकली भिन्न हैं,होते कहां समान

मंच सभी अब कर रहे,कविता का व्यापार
ज्यादा दिन पर कब टिका,जो नकली सामान

छन्द बिना कविता नही,ठोलक बिना न ताल
राग बिना संगीत क्या,सुर के बिन क्या तान

ज्ञान बड़ा अनमोल है,देती ज्ञान किताब
पर मंचो पर अब यहां,पैसा दे पहचान

फूहड़ता को दे रहे,जो कविता का नाम
क्या कविता वो पढ़ रहे,खुद भी हैं अन्जान


गीतिका

टूटे  हुए सपनो  को अपने जोड़ रहे हैं
अन्जान दिशाओं की तरफ दोड़ रहे हैं

उम्मीद का दिया जब बुझता हुआ दिखा
विश्वास का दीपक जला के छोड़ रहे हैं
                        
आँखों से आंसू और हम बहने नही देगें
नयनो का नीर इस लिए निचोड़ रहे हैं

उनको किया है दूर अपने आसपास से
जो आस, मनोबल हमारा तोड़ रहे हैं

किस बात की कलह है क्यों बैर भाव है
बिन बात ही आपस में क्यों सिर फोड़ रहे हैं

कैसे करेगें न्याय की उम्मीद हम वहाँ
सच को जहां पे तोड़़ वो मरोड़़ रहे हैं
                        शालिनी शर्मा












दोहा मुक्तक
पेड बताता पेड़ से,अपने दिल का हाल
कई जातियां हो गई,पेड़ो की पामाल
बिना हमारे कुछ नही,मानव का अस्तित्व
संग हमारे ये जुड़ा,इसे नही है ख्याल
                        शालिनी शर्मा

कुण्डलियां
नही बचे हैं पेड़ अब, हरियाली,न ड़ाल
पेड़ काट कर,कर दिये,सारे वन कंगाल
सारे वन कंगाल, खो गई है हरियाली
मौसम में बदलाव,  धूप है जलने वाली
भूजल भी है खत्म, ये संकट खुदी रचे हैं
जो देते थे छांव,पेड़ वो नही बचे हैं
                      शालिनी शर्मा


शब्द मौन हैं व्यथा देखकर,धरती का उजड़ा श्रृंगार
बंजर हो गई भूमि अपनी,उगे वनो पर करे प्रहार,

मानव की सुविधा की खातिर,हम विकास पर देते जोर
पेड़ काट कर सड़को का अब,करते हैं हम जब विस्तार

देख हृदय दुख से भर जाता,कहीं उखड़ता है जब पेड़
वक्त अभी वो आने वाला,नही मिलेगा जब आहार

पंछी को बेघर हम करते,कानन का छीना आवास
पारितन्त्र को तहस नहस कर,करते विपदाएं साकार

मौसम में बदलाव हो रहा,और करे पारा बेहाल
पेड़ अगर जो नही रहेगें,सांसे भी होगीं दुश्वार

प्रश्न पूछती है धरती अब,करती है वो रोज सवाल
कब रोकोगे दोहन मेरा,खुदपर ही करके उपकार
                       शालिनी शर्मा




वृक्षों को उगा के कर धरती का श्रंगार 
पोधे मित्र हमारे हैं जीवन का आधार 
       जंगल  कटेंगे होगी ताप में वृद्धि 
       ग्लेशियर पिघल कर देंगे जल में भी वृद्धि 
       मौसम में परिवर्तन भी होगा लगातार 
पोधे- - - - - - - - - - - - - --
       ग्लोबल वार्मिंग की ये समस्या 
        co2  के कारण है ये समस्या 
       सोचो  co2 का अब ना होवे विस्तार
पोधे - - - - - - - - - - - - - -
       रोग मिटाये ,करते ईंधन की पूर्ति 
       आक्सीजन ताजी देती स्फूर्ति 
       पोधो से होता है पर्यावरण में सुधार 
पोधे - - - - - - - - - - - - - -

    पेड़ अगर जो कट जाते हैं
     बाढ़ के खतरे बढ़ जाते है
     भूस्खलन की भी तो बढ़ जायेगी रफ्तार
पोधे -------------------------
                           शालिनी शर्मा  



































































































  ---------- -------- ---------- ------   --------

मन की वीणा से वन्दन करे देवी माँ 
ज्ञान का कोष भर दे तू हे देवी  माँ 
     श्वेत हंसो सा मन हो कमल सा हो तन 
     पूजा के थाल  जैसा  हो जीवन चलन
     राह  के कष्ट हर ले तू हे देवी माँ 
ज्ञान का-------------
      गंगाजल जैसी निर्मल हो बोली मेरी 
      त्याग,सदभावना हो हमजोली मेरी 
      सेवा का भाव दे दे तू हे देवी माँ 
ज्ञान का -------------
       द्वेष ,ईर्ष्या का कर दे तू अब नाश माँ 
       सत्य ,सत्संग पे हो मेरा विश्वास माँ 
       सदविचारों का वर दे तू हे देवी माँ 
ज्ञान का --------------
        हो निरोगी बदन ,खुशियों का हो चमन 
        नम ना हो गम से मेरे कभी ये नयन 
        होंसलों के भी पर दे तू हे देवी माँ 
ज्ञान का --------------
         यश वैभव का वर दे ,सुख समृद्धि दे माँ 
         ज्ञान में,शान्ति  में कर  दे वृद्धि  हे  माँ 
         जग का कल्याण कर दे  तू  हे  देवी माँ 
                                                 शालिनी शर्मा


कमी नही गम की,आंसू की,लाचारी तन्हाई की
वो कैसे कुछ कर पायें जो फिक्र करें रुसवाई की

भरी सभा में चीर हरण कैसे होता पांचाली का
जब पुकार की केशव ने खुद आकर के सुनवाई की

'डूबे को तिनके का सहारा' सुना था हमने किसी से ये
हमने हर तिनके की आगे बढ़ बढ़ कर अगुवाई की

बुरे समय में साथ छोड़कर साया भी चल देता है
इसी लिए परवाह नही करते हम अपनी परछाई की

गिरे उठे उठकर दोड़े पर रेस बीच में नही छोड़ी
धूप में बहते हुए पसीने में अनुभव ठंडाई की
                          शालिनी शर्मा



 मेरी और देखेगा जो  बुरी नजरो से कोई उसके लिए मैं चिन्गारी बन जाऊंगी
और कोई अत्याचार  मुझपे करेगा तो मैं दुर्गा सी शेर की सवारी बन जाऊंगी    
रहूंगी सजग कोई मुझको फंसा न पाये जाल जिससे कटता वो आरी बन जाऊंगी
अब न चलेगा ये फरेब न ही बहकूंगी अपने पिता की बस दुलारी बन जाऊंगी
                           शालिनी शर्मा




जब भी हुआ है अपमान यहां नारियो का नदियां लहू की बही शव बिछ जाते हैं
सीता का हरण किया रावण ने जब कभी लंका जलाने हनुमान चले जाते हैं
बचता नही है दुस्शासन कभी भी यहां और दुर्योधन के पैर तोड़े जाते हैं
बुरी नजरो से छोड़ो नारियों को देखना ये केश खुले द्रोपदी के,सीख दे जाते हैं
                    शालिनी


वसुधा को झुक झुक नमन करेगें और चूम चूम माटी कण शीश से लगायेगें
भोर में दिवाकर का वन्दन करेगें और उजली किरण से बदन नहलायेगें
अब न रहेगें कहीं पिंजरे में खग सब खोल खोल पिंजरे विहंग उड़ायेगें
बगिया में सुमन खिला के चहुं ओर हम सोंधी खुश्बू से सारा जग महकायेगें
                           शालिनी शर्मा


 लीड़र की पहचान यही, सब झूठ कहे, सच बात छिपाये
रोज दिखा कर एक नया, उपहार छले, कर जोड़ रिझाये
और बिना कुरसी तड़पे जल नीर बिना मछली मर जाये
जोड़ करे फिर तोड़ करे, सब चाल चले,सब लोभ दिखाये

     ------------------------  ----------------------

 जग को संवारने का काम जो भी करता है दुनिया में अपना वो नाम कर जाता है
जिसने भी समझी है पीर दीन दुखियों की बन के मसीहा घर दिलो में कर जाता है
जिसने भी मोह माया त्याग के किया है तप वो तो जिन्दगी के हर भंवर से तर जाता है
जिसने कठिन घड़ियों में धीर धार लिया   उसका जीवन खुशियों से भर जाता है
                             शालिनी शर्मा



सुने न जो फरियाद दुखी की वो दरबार नही बनना
मुश्किल में जो हार मान ले वो किरदार नही बनना
थकना नही है,बढ़ते जाना है मन्जिल पा जाने तक
हो  कमजोर  इरादे  जिसके, वो लाचार नही बनना
                            शालिनी शर्मा



जीवन  में  हो  सादगी, ऊंचे  रहे  विचार
सफर जिन्दगी का कठिन,नही मानना हार

अच्छी चीजों को चुनो,अपनाओ सद्भाव 
अच्छा बनने के लिए,खुद में करो सुधार

झूठ,कपट,दुर्भावना, द्वेष फेंक दो दूर
अवगुण सारे त्याग दो,हो अच्छा व्यवहार

संस्कार के फूल से, महके सकल जहान
संचित गुण का कोष हो,गुण का हो विस्तार
                      
मोह माया अन्धियार है,करे खुशी का अन्त
छोड़ तिमिर की जिन्दगी,कर जीवन उजियार   

फूल खिला सदभाव के,रोप प्रेम के बीज
सेवा कर बीमार की,कर दुखियों से प्यार
                             शालिनी शर्मा

                              
चामर छन्द
212  121  212   121  212
हो न भेदभाव लोग सब यहाँ समान हों
पंख हों सभी उड़े़  अनन्त आसमान हो
हो न बन्दिशे न बेड़ियां,खुली जुबान हो
हिन्द देश विश्व  में  सदा सदा  महान हो
               शालिनी शर्मा


पाल पोस कर कर दिया,जिसने वत्स जवान
वृद्ध आश्रम छोड़ कर,भूल गया पहचान

मात पिता के कर्ज को,सकता कोन उतार
मात पिता का तुम कभी,मत करना अपमान

ये  बूढ़े माता पिता, क्यों  बन  जाते बोझ
जो रखते सारी उमर,सब बच्चो का ध्यान

बालक क्यों भूखा रहे,खुद सह ली थी भूख
वही रोटियों  के लिए,तरस  रहा इन्सान 

उन आँखों में नीर है,भीगे जल से नैन
जिसने चाही थी सदा,बच्चो की मुस्कान

बच्चो की किलकारियां,भाता जिनको शोर
उन्हे पुत्र ने कह दिया,खाली करो मकान

दुआ जिन्होने की सदा,बच्चे हों खुशहाल
आज वही गमगीन हो,बांध रहे सामान

आज दुखी हो कर पिता,करते यही सवाल
ऐसी हमने प्रभु कहां,मांगी थी सन्तान

-------- -------- -------- --------- -------- ------- ------

 जो हमें मुर्दा समझकर छोड़ गये शमशान में
शब्द उनकी असलियत के कुछ पड़े हैं कान में
जो हमारी मोत पर रोये यहाँ सबसे अधिक
वो कहें वारिस घटा संपत्ति  के सामान में
                         शालिनी शर्मा



 कुंडलिया छन्द
नेता  करते  हैं  यहां , बस  अपना  उत्थान
जनता को  ही देखिए, करने  सब बलिदान
करने सब बलिदान, गिला मत करना कोई
चुप बस  रहे जुबान , कसम जो आँखे रोई
देकर   हमको   कोर ,  चपाती  सारी  लेता
सूखी   खाओ  तुम  ,  चुपडी  खायेंगे नेता
                         शालिनी शर्मा



 बैसाखी
खेतो में फसलें लहराई
हरियाली हर और है छायी
हर्षित ढोल बजाते लोग
नाच नाच के गाते लोग
हो देखो आयी बैसाखी 
हो देखो आयी बैसाखी

गावों में सज गये हैं मेले
बच्चे झूलो पर खुश खेले
कहीं चूड़ियाँ खन खन बोले
गोरी न घूंघट पट खोले
चले मस्त पुरवाई
हो देखो आयी बैसाखी 
हो देखो आयी बैसाखी

बैलो की घन्टी टन टन बोले
बैल गाड़ी खाये हिचकोले
मेले में हलचल है भारी
खुश होकर झूमें नर नारी
बांट रहे सब लोग मिठाई
हो देखो आयी बैसाखी 
हो देखो आयी बैसाखी

कोयल गीत मधुर गाती है
बुलबुल फुदक के इठलाती है
ट्यूबवैल का बहता पानी
खेतो को दे रहा जवानी
प्यासी भू हर्षायी
हो देखो आयी बैसाखी 
हो देखो आयी बैसाखी
                    शालिनी शर्मा 



 वो अजनबी से क्यों हैं भला क्या हुआ उन्हे
क्यों दिखता नही रिश्तो से उठता धुआं उन्हे
नाराजगी अपनो से होती गैरो से नही
वो जख्म दे रहे हैं हमने दी दुआ उन्हे


किरीट सवैया छन्द
211 211 211 211 211  211  211। 211
प्यार किया सब वार दिया कुछ चाह नही तुझको अब पाकर
जीवन के सब भूल गये दुख चैन मिला हमको अब आकर
एक हँसी सब लूट गई धन,नाज करें सबको बतलाकर
ड़ोल रहा घर आंगन में रवि जीवन की इक भोर उगाकर
                  शालिनी शर्मा



 1222  1222     1222 1222
विदा होके हमेशा को,चले हैं दूर आजा रे
दिखावे के ही दो आंसू जनाजे पर बहा जा रे

कभी थोड़ा समय मिल कर बिताते साथ में हम तुम
हुई हैं बन्द ये आँखे,दिया घर में जला जा रे

न देना तू कभी नफरत,कभी हम याद जो आयें
तरसती आँख को आकर अभी मुखड़ा दिखा जा रे

सभी शमशान तक का ही निभाते साथ,तू भी आ
चला आ साथ में कुछ दूर, ये नाता निभा जा रे

लगा दे हाथ, कांधे पर उठा, शमशान तक तो ला
लिटा कर अंतशय्या पर,चिता अग्नि लगा जा रे

हमें आराम मिल जाता,जरा शव से लिपट जाता
चिता भी पूछती है क्यों नही आया बता जा रे
                      शालिनी शर्मा



 सुकूं लाये कहां से काम से फुर्सत नही मिलती
हमें जीवन झमेलो से कभी राहत नही मिलती
हमारे काम की वो ठीक से कीमत नही देते
मिले सूखी हुई रोटी हमें ताकत नही मिलती
                     शालिनी शर्मा



गजल
सपनो  की बारात  सजाना  अच्छा है
बुरे  नही  हालात  बताना  अच्छा   है

रिश्तो को मत झूठ के वस्त्रो से ढापों
रिश्ते पावन,साफ बनाना अच्छा  है

उम्मीदो के महल हुए  खडंहर कब  के
मलवे की  तादाद   छिपाना  अच्छा है

सदमें में है गुमसुम  उसको  मत  छोड़ो 
आंसू  की  बरसात  कराना  अच्छा   है

बाग  बगीचे   महकाते  है   जीवन   को
गुलदस्ते  में   पात   सजाना   अच्छा  है

रुठ  गये  अपने  तो  वापस  ले   लाओ
उन  से  बिगड़ी  बात बनाना  अच्छा है

शहर   प्रदूषित   हुए   फैलती   बीमारी
शहरों   को   देहात  बनाना  अच्छा   है

साजिश  रचने  वालो  से   दूरी  रखना
दुश्मन का आघात बचाना अच्छा है
                           शालिनी शर्मा

मेरी रुसवाई का चर्चा,हो गया तो हो गया
मोज मस्ती में जो खर्चा हो गया तो हो गया
कब तलक रोते रहेगें बेवफ़ाई पर तेरी
इश्क का जब लीक पर्चा हो गया तो हो गया
                     ---------- -----------
रूठ कर वो साथ अपने हर तराना ले गया है
गीत,गज़लें,कहना,सुनना, गुनगुनाना ले गया है

खोल कर जिसको दिखायी कल तिजोरी प्यार से
आज वो ही छीन कर सारा खजाना ले गया है

वक्त से पहले बड़ा कर,जिन्दगी ने ठोकरे दी
छीन कर बचपन, समय हर पल सुहाना ले गया है

इस तरह तोड़ा हमारा दिल कभी हँस ही न पाये
वो खुशी का,साथ अपने हर बहाना ले गया है

मत बहाओ आंसुओं को,मोल इनका कुछ नही
आंसुओं को वो सुखा, बूंदे गिराना ले गया है

जख्म जो भी दे रहा है वो अभी सारे नये हैं
खंजरो का घांव वो जो था पुराना ले गया है

कैद भी दी और दीया भी बुझा कर रख दिया है
रोशनी की हर किरण को ये जमाना ले गया है
                       शालिनी शर्मा


अब हमने जज्बातो को काबू में करना सीख लिया
नही टपकने देते आंसू आँख में भरना सीख लिया
पत्थर दिल बनकर ही हम इस दुनिया में जी पायेगें
कान बन्द, चुप रहते हैं बहस से बचना सीख लिया
                शालिनी शर्मा

जिनपिंग देख तेरे सैनिको की नाक काट,भेज दिया वापस, न सूरत दिखाना फिर,
ढाई फुटे चीनियो न करो उत्पात, बोलो आँख फूटी कितनो की,गिन के बताना सिर
मार मार लाठियों से तुझको खदेड़ दिया, अब फिर से न गुस्ताख तू उठाना सिर
फिर से दुबारा तूने आँख जो तरेड़ी सुन,दोड दोड खुद को न बिल में छिपाना फिर
---------- ---------- ----+++ ------++++----++++


212  212  212
आधार छन्द-वाचिक महालक्ष्मी
गीतिका
आदमी  देख   कर  दंग  है
जिन्दगी का  अजब ढंग  है

एक    हालात   कैसे    रहे
जिन्दगी  के   कई  रंग   है

हारना  ही   पड़ा   देख  लो
जब  समय  से  हुई  जंग है

राज शाही  कभी  थी  वहां
आज  हर ताज   बेरंग    है

हाल    बेहाल  हैं   रो   रहा
हाथ उसका  बड़ा  तंग   है

हार   मानी  नही, वो  लड़ा
होंसलों   से   भरे  अंग   हैं

वो  बदलता    रहेगा   सदा
एक मुख,  पर  कई  रंग  है
                
भीड़ में  भी अकेला  खड़ा
कोन  किसके  यहां  संग है
              शालिनी शर्मा



सुन्दर दिखा के स्वप्न फिर छला या मुझे
मंझदार में वो छोड़ के चला गया मुझे
खुद सेे भी ज्यादा जिसपे यकीं था हमें सदा
छल देके गम की आग में जला गया मुझे
                        शालिनी शर्मा



ऐसा मंजर देखकर दिल करता चीख पुकार
भीड़ भरे बाजार में  वो उस पर करते वार
तमाशाई सब बन गये करते नही बचाव
दुस्साहस का भीड़ ने नही किया प्रतिकार
                 शालिनी शर्मा


 कैसे    भृष्टाचार     रुकेगा   और     रुकेगी  बेईमानी
कैसे कम  हो  दीन दुखी  की आँखों से  ये  बहता  पानी
छल और द्वेष कपट के भावों का परित्याग जरूरी है
परहित और सेवा से खुशियां पाते   जो  होते  हैं  दानी
                  शालिनी शर्मा



मुक्तक द्व
1.
 लूट  रहे  हैं  देश को,  करते  भृष्टाचार
नेताओं  का  देखिए,  काला  कारोबार  
काले  इनके  कर्म  हैं, ये  हैं  धोखेबाज
चपर कनाती लोग ये दलबदलू,मक्कार

2.
 झूठ,कपट,छल से नही,नेता को परहेज
अवसरवादी  लोग ये,  होते  कितने  तेज
चपर कनाती बो रहे,  वैमनस्य  के  बीज 
घोटालो  से  ये  भरे, अपना  रोज  लगेज
                             शालिनी शर्मा

[

मच्छर से बचके रहो,     कर  देंगे  बीमार
ठहरे पानी  में बढ़े,        इनकी  पैदावार
हर बुखार से आपको,रहना सजग सचेत
ड़ेगू और मलेरिया,      देते हमें बुखार
                        शालिनी शर्मा



बीज  किसानो   ने  भूमि  में  बो   ड़ाले
करे   काम  मजदूर  न  देखें   वो  छाले
जिसका है जो काम वो निष्ठा से करता
नेता   करते   दिखे  यहां  बस   घोटाले
                              शालिनी शर्मा



कितनी और परीक्षा बाकी बता जिन्दगी तू अब तो 
हार मान कर बैठ गये हैं,दे कुछ खुशियां तू अब तो
राह में कंटक बहुत अधिक हैं,और है मन्जिल दूर अभी
राह के कंटक दूर हटा कर,सुगम राह कर तू अब तो

 


 आधार छन्द--बिहारी
221 1221 1222 122
जिनके लिए अपना सभी कुछ वार दिया है
उसने लगा आरोप हमें मार दिया है
सांसे बची हुई हैं मगर जिन्दगी नही
चाहत हमें थी फूल की पर खार दिया है
                     शालिनी शर्मा


 1222  1222  1222  1222
कभी आंसू तुम्हारी आँख में आने नही देगें
गमों का बोझ ले तुमको कहीं जाने नही देगें
सदा ही सींचते हैं हम धरा सूखी हुई जो है
बगीचे में कभी फूलों को मुरझाने नही देगें
                       शालिनी शर्मा


आधार छन्द--बिहारी
221 1221 1221 122
जिसके लिए अपना सभी कुछ वार दिया है
उसने लगा आरोप हमें मार दिया है

सांसे न बची,जीवन न बाकी बचा है
चाहत हमें थी फूल की पर खार दिया है

लाये न सितारे न कभी चाँद ही लाये
बस ख्वाब दिये क्या ये सरकार दिया है

आया न कभी गम में आया न खुशी में
उसने न दुआ दी न उपहार दिया है

हमने न किया शिकवा ना घाव दिखाये
बस जिन्दगी को प्यार किया प्यार दिया है

आसार अभी मौसम के ठीक नही है
धोखा नदी के बीच में हर बार दिया है

बाकी न रहा तेरा अहसान उतारा
जीता हुआ वापस सभी कुछ हार दिया है
                      शालिनी शर्मा


शर्मिन्दगी चेहरो पर लाते भी नही हैं
अपने बुरे कर्मो पे लजाते भी नही हैं
चादर बेशर्मियों की ओढी है इन्होने
कितने किए घोटाले बताते भी नही हैं
                       शालिनी शर्मा

गीतिका
भरे पेट वाले ही कमियां थाली में गिनवाते हैं
जिन्हे रोटिया नही मयस्सर वो जूठन भी खाते हैं

एक तरफ तो महफिल में महलों में सजी हैं दीवारे
और कहीं पर सर्द रात में कुछ न तन ढक पाते हैं
                         
ये विकास कुछ का ही होता ह्रास सहे बाकी जनता
भरी तिजोरी वाले बस।  सुविधा का लाभ उठाते हैं

कहां हुई है खत्म कुरीति आज भी दूल्हे बिकते हैं
पिता बेटियों की शादी की फिक्र में सो नही पाते हैं

इन्हे देखिये इन आँखों का नीर  नही थम पाता है
दहशतगर्द चिराग बुझा गये घर का, ये  बतलाते हैं

व्यापारी जो बड़े यहां पर उन्ही का फलता है व्यापार
छोटे  व्यापारी  तो लागत  तक  निकाल  न  पाते  हैं
  
जागीरदारी खत्म हो गई है पर शोषण तो नही रूका
यहां आज भी कुछ अमीर निर्धन के हक खा जाते हैं
                        शालिनी शर्मा


 122  122  122  122
तुम्हे छोड़कर अब तो जाना पड़ेगा
जहां दूसरा अब बसाना पड़ेगा

बहुत सह चुके हैं सितम हम तुम्हारे 
तुम्हारा भी अब दिल दुखाना पड़ेगा

कहाँ तक जियेगें तुम्हारे सहारे
सभी बोझ खुद ही उठाना पड़ेगा

नही जिन्दगी में गमों के सिवा कुछ
किसी  के  लिए  मुस्कुराना पड़ेगा

नही साथ दोगे अगर तुम हमारा
अकेले समय तब बिताना पड़ेगा

अना वो मेरी रोंदना चाहते हैं
कहें के तुम्हे सिर झुकाना पड़ेगा
                
मिटा न सकोगे ए हाकिम हमें तुम
हमें  तख्त  को अब हिलाना  पड़ेगा

चढ़ा है मुखौटा शक्ल पे तुम्हारी
हमें आइना अब दिखाना पड़ेगा
                      शालिनी शर्मा


 कैसे  करेगें  बात   जब   वो  बोलते  नही
कुछ तो है दिल में राज जिसे खोलते नही
खामोशियां  उनकी  हमारी  जान  लेती है
अन्दर घुटन है कितनी क्यों वो तोलते नही
                                शालिनी शर्मा


 लहराती फसलो को देखा,मन पुलकित हो जाता है
अमिया के बागो का सुन्दर दृश्य हृदय को  भाता है
गावं की चौपालो की गपशप में होता है अपनापन 
ट्यूब वैल से बहता पानी  मन  ठड़ंक  दे  जाता   है
                             शालिनी शर्मा


 मेरी जिन्दगी का उजाला तुम्ही हो
तुम्ही मेरी सांसे तम्ही जिन्दगानी
तुम्ही ने सजायी मेरे घर में खुशियां 
तुम्ही फूल ,खुश्बू,तुम्ही ऋतु सुहानी
तुम्हे देख कर मैं हर इक गम भुला दूं
तुम्ही हो लबो पर हंसी की निशानी
न कोई थकावट,न मायूसी कोई
दी ठहरी नदी को तुम्ही ने रवानी
अहसास होने लगे थे जो बूढ़े
तुम्हे देख कर फिर लोटी जवानी



 221   2121   1221   212
कोई नही जिसे हम अपना बता सके
आंसू दिखा जिसे हम पीड़ा सुना सके
ये लोग जो अभी तक देते रहे सजा
कैसे दया दिखा कर वो दुख जता सके
                       शालिनी शर्मा


 जिससे दिल की बात कहें अब वो ऐसा हमराज नही
उसके कानो तक जो पहुंचे अब कोई आवाज नही
सोने के पिंजरे को पंछी देख रहा रोते रोते
पंख उसे हासिल हैं लेकिन पंखों में परवाज नही
                        शालिनी शर्मा


 बगिया उजड़ी  उजड़ी सी है ,कोयल गीत न गाये
बन्द हुआ कोलाहल खग का कोयल गीत न गाये
 मोर न नांचे वन में हिरनी भरती नहीं कुलांचे 
मेरे संग हैं दुखी बदलियां टप टप नीर बहायें
                          शालिनी शर्मा


हार नही मानी है हमने आगे भी नही मानेगें 
नयी प्रतिज्ञाओं,संकल्पों के संग आगे भागेगें
दोड़ जीतने का जज्बा है और हौंसला उड़ने का
पंख छीन लो फिर भी सपने सच करने को जागेगें
                             शालिनी शर्मा


रात की तन्हाइयों में रो रहे हैं ख्वाब सब
कब मेरी बरबादी होवे हैं बहुत बेताब सब
बिन किसी उम्मीद के कैसे जियें कोई बताये
सिर्फ अंधियारा है बाकी खो गये महताब सब
------- ------- -------- ------- ---------
गर्मी में जल अमृत है और पेड़ की छांव सुहावनी
कटा पेड़ देता है हमको देख यहां चेतावनी
अगर पेड़ की कीमत अब भी न समझे पछताओगे
बिना वृक्ष के धरती की सूरत है बड़ी ड़रावनी
                           शालिनी शर्मा


पक्षी अब दिखते नही न कोयल न मोर
कहीं नही शहरो में दिखता अब विहंग का शोर
न गौरेया और न तोता,दिखते नही कबूतर
चीं चीं करती चिड़िया गुम है,शान्त थी कितनी भोर
                     शालिनी शर्मा


2122  2122  212
काटते कल तक फिरे जिस पेड़ को
धूप  में  वो  खोजते  उस   पेड़  को

आशियाना  पंछियों  का   ड़ाल   है
बाग    में   पंछी   हिलायें   पेड़  को

काम   की   चीजे   हमें   देते   सदा
रोज  पानी   दीजिए   हर  पेड़   को

फूल   देते    हैं    दवा   भी   दे   रहे
फल   सभी  मिलते उगा  के पेड़ को

रोकते    हैं    बाढ़   के   सैलाब  को
मानिए     जीवन   प्रदाता   पेड़  को

वन्य   जीवो   के   लिए  भी सोचिए
छोड़   के    कैसे   जिएगें   पेड़   को
                                शालिनी शर्मा



पेड़ लगाकर कीजिए,खुद पर ही उपकार
सूखी  धरती  का  करो, वृक्षो  से  श्रृंगार
उद्योगो  का  ये  धुंआ, बढ़ा  रहा  है ताप
पेड़ काट मत  कीजिए, गर्मी का विस्तार

----------       ---------- ----------- --------
 जल को बहता छोड़ के,मत निपटाओ काम
खुली छोड़ टोंटी चले,जल बहता अविराम

जो गाड़ी धो धो करे, रोज नीर बेकार
रोज इसे मत धोईये,पोछ करो तैयार

जल देता चेतावनी,मेरी कीमत जान
मुझे न तू बर्बाद कर,मेरा कहना मान

जल लोगो की जान है,जल जीवन आधार
बूंद  बूंद  है  कीमती,  बहुमूल्य जल धार

गर्मी   से   बेहाल  हो,   चाहें   सारे  नीर
शीतल जल को देखकर,सारे हुए अधीर

शीतल जल ने भर दिया,सबके मन उल्लास
सारे आकर पी  रहे,  आमजन  और   खास
                                  शालिनी शर्मा


बीता बचपन आपकी,गोदी में बिन्दास
कोई भी चिन्ता फिकर,आयी कभी न पास
आयी कभी न पास,पिता घर सब सुख पाये
किये दूर सब शूल, फूल ही फूल सजाये 
पिता आपका प्यार, नापता कैसे फीता
मिली सुखों की छांव,धूप बिन जीवन बीता
-------------     -----------    ----------
 पिता तुम्हारे प्यार ने,दिया हमें उत्साह
पथरीला पथ कर दिया,सुगम दिखाई राह
सुगम दिखाई राह,चुने राहो के कांटे
कर जीवन गुलजार ,फूल खुशियों के बांटे
आदर हृदय अपार ,देख के दूरदर्शिता
दिया सुरक्षा भाव,बन के इक श्रेष्ठ पिता
                            शालिनी शर्मा

 छन्द-सिन्धु
1222 1222 1222
हमें मिलकर बुराई को भगाना है
जहां को और भी अच्छा बनाना है
दुखी कोई नही हो, और रोये जो
उसे दे  हौंसला  उसको  हंसाना है
                         शालिनी शर्मा



 नही उसको हरा, तूफान पाया है
सहे ताने, उन्हे  ताकत बनाया है
जमाना आज उसके चूमता है पग
जमाने ने जिसे, बरसो सताया है

---------- ----------- --------------
212   212   212   212  2
आजकल हम खुशी में जिये जा रहें हैं
वो हमें प्यार इतना किये जा रहें हैं

रोज हमको नयी वो खुशी दे रहे हैं
दूर हमको गमों से किये जा रहे 
हैं

आँख नम हो गई मान इतना मिला है
आज आंसू खुशी के पिये जा रहे हैं

ये नजारे हसीं जो दिखाये उन्होने
बन्द पलको में करके सिये जा रहे हैं

चाँद भी पा लिया,आसमां पा लिया है
वो उड़ा के कहीं पर लिये जा रहे हैं
                
जिन्दगी  को बनाया चमन,फूल वाला
रोशनी से हमें तर किये जा रहे हैं
                     शालिनी शर्मा


: सरस्वती वन्दना
राह  के  कंटक  दूर  करो माँ
आओ   और  कल्यान   करो
आन  विराजो  मात  यहाँ तुम
ज्ञान   सभी   को   दान   करो
मात   दया    करके   हम  पर
हम  दीनन  का  उत्थान  करो
जोड़  के   हाथ  पुकारे,  कहो
माँ शारदे,गीत  का  गान  करो
गीत    सुनायेगें  हम, माँ   तुम
वीणा   की   ऊंची   तान  करो
ज्ञान  स्वरो  का  हमें  देकर माँ
दूर    तिमिर,     अज्ञान    करो
                     शालिनी शर्मा


गीतिका
212   212   212   212 
मान ली  है  खता  ये  दुबारा  न  होगा
मांग माफी ये कद कम हमारा न होगा

खून  को  ये  रवायत  पता  ही नही है
क्रोध ने तो किसी  को सुधारा न होगा 

रूठने की सजा अब बहुत हो चुकी है
क्रोध तेरा  हमें  अब  गवारा  न  होगा

आज फिर से भुला दी कही बात तेरी
ये  भुलाये  बिना भी,  गुजारा न होगा

भूल जाओ उसे जो कहा, जो सुना  है
भूलने  के सिवा,  कोई  चारा  न होगा

जीतने  के  लिए   हारना  भी   पड़ेगा
फा़संला जो  बढ़ा कम दुबारा न होगा

पास आकर यदि,  दूर जाना पड़ा जो
हो  निकटता  में  दूरी, गवारा न होगा

जान जाती  नही है, जिया भी न जाये
मीत ने  प्यार से  गर  पुकारा  न होगा

मान  लू  बात मैं, मान  ले  बात गर तू 
जिन्दगी में  कभी  गर्म  पारा  न होगा
                   शालिनी शर्मा



 NATURE
तू शबनम की बूँद 
पवन है सुबह सुबह बहने वाली 
तू सर्द चाँदनी रात 
कोयलिया कुहु कुहु कहने वाली 
नयनाभिराम नव धवल शिखर ,
झरना है गीत सुनाता है 
तू शान्त समुन्दर सा गहरा
है  लहर विचल भी जाता है 
उन्मुक्त भोर की किरण है तू 
तू है चिड़ियों का कोलाहल 
तू तो सावन की रिमझिम है 
 तू इन्द्रधनुष,तू है बादल
तू फूलो की घाटी सा है 
देता है खुश्बू जीवन को
तू बीज अंकुरण जैसा है 
हरियाली दे खेतो,वन को
तू जीवन धारा गंगा है
तुझ बिन मैं जी न पाऊंगी
तू सांसो की है ड़ोर मेरी
मैं तेरे बिन मर जाऊंगी
                        शालिनी शर्मा



मैं नदिया हूँ,चंचल हूँ
मैं करती हूँ मनमानी
शीतलता देता है मेरा
निर्मल बहता पानी
शीतलता---------             
हर तरंग मदमस्त उछलती
लहरो की अंगड़ाई से
नाविक गीत सुनाते हैं 
पतवारो की शहनाई से
हर नौका कहती है मेरी
अलग ही एक कहानी
शीतलता-----------
जलचर मेरी विरासत है
तट,तीर्थ मेरी पहचान
सिंचित खेतो को मैं करती
सरसो हो या धान
मैं  जीवन धारा हूँ
प्यासे की है प्यास बुझानी
शीतलता---------
जगमग घाट मिलेगें तुमको
घाट मेरे जब आओगे
तुम्हे मिलूंगी अविरल बहती
भूल नही तुम पाओगे
सरयू के तट हों,या हो
काशी की शाम सुहानी
शीतलता---------
                  शालिनी शर्मा


पायल की रुनझुन,तुझको सुनाये सुन,
छम छम पायल,ये घुंघरु बजायेगें
अंगना में घूम घूम,नाच नाच,झूम झूम,
ढोलक की थाप पे गीत गुनगुनायेगें
घर में सजा है द्वार,टंगें हैं फूलो के हार,
झिलमिल झालरों से घर चमकायेगें
घर में उमंग छायी,खुशियां अपार आयी,
जन्मदिवस धूमधाम से मनायेगें
                   शालिनी शर्मा


गीत 
 कोई ऐसा मिले जो संवारे मुझे                                                                                                                                      
   प्यार आँखों में भर कर निहारे मुझे 
                      मेरी चाहत है क्या कैसे मैं खुश रहूं 
                      हर ख़ुशी देके मुझको निखारे मुझे  
हो हवाओं में जब प्यार की रागिनी 
मुझको ऐसा लगे के पुकारे मुझे 
                      देखूं जो उसको तो मुझको ऐसा लगे 
                      दे गया जैसे सब चाँद  तारे मुझे 
परियों की नगरी सा उसका घर हो सजा 
खूबसूरत दिखाये नजारे मुझे 
                      पालकी लेके जाते कहारों से कह दो 
                      आँगन में उसके उतारे मुझे 
 बन के दुल्हन रहूं उसके आंगन में मैं
पायलों ने  किये  हैं  इशारे  मुझे                                  शालिनी


कहां खोई दया करूणा,सभी के हाथ में खंजर
नही अब फूल झरते हैं,जुबां होने लगी बंजर
यहाँ नफरत दिलो में रोज बोई जा रही है जब
तभी तो रोज दिखते हैं जले सद्भाव के मंजर
                  शालिनी शर्मा


दोहा मुक्तक
गर्मी  से   बेहाल  है,   जलता  है  इन्सान
पेड़ो की उपयोगिता,  कब समझा नादान
पेड़ बिना जीवन नही,वायु बिन नही सांस
वृक्ष काट के कर रहा, अपना ही नुकसान
                           शालिनी शर्मा

 वो अपने थे जो घावो पर नमन ड़ाल मुसकाए है
जान हकीकत अपनो की हम क्यों सदमें में आये हैं
पीठ में खंजर घोप रहे हैं राजदार जो अपने थे
जिनको जान बचानी थी वो कातिल को पता बताये हैं
     -------   --------- --------- ------------

यहां कोई नही अपना,जिसे दुखड़ा सुनाओगे
मजा लेगें सभी सुनकर,जिसे भी गम बताओगे

यहां कोई कभी निर्बल,नही सम्मान पाता है
धनी,काबिल बनोगे जब तभी दुनिया झुकाओगे

बिना धन के अनाजो का यहां दाना नही मिलता
मरोगे बिन दवाई के नही जो धन कमाओगे

जरा सपने बुनो ऊंचे,तुम्हे नभ,दिव बुलाता है
बढ़ाओ तो कदम आगे सम्भलना सीख जाओगे

बिना चीखें यहां आवाज कानो तक नही जाती
पुकारोगे सभी मिलकर तभी अधिकार पाओगे

जगाओ तुम मरी सम्वेदना आओ बचाने को
किसी की मौत पे, या बस,दिये कैंड़िल जलाओगे
                      शालिनी शर्मा


 प्रीत दिखावा है यहां,बस मतलब की प्रीत
रिश्ते हैं बस नाम के, ये कैसी है रीत
अहंकार में हम कहीं,रहे न खाली हाथ
जीवन कुछ दिन को मिला,मन से मन को जीत
                             शालिनी शर्मा


Comments