छन्द दोहे




दोहे

एक जलजला आ गया,हिलने लगी जमीन
समय देखिए किस तरह,सब लेता है छीन

पल में खुशियां छीन ली,करी बिना जल मीन
पता नही कब हर्ष को,कर दे वो गमगीन 

जीवन भर की साधना,हो जाती बेमोल
जब कोई भर द्वेष से,कड़वे बोले बोल

तीर पीठ में घोंप के,घायल करे शरीर
घायल कर दी आत्मा,सही न जाये पीर

ये कैसे षड़तन्त्र हैं,ये कैसे आरोप 
अपमानित ऐसे किया,चली झूठ की तोप

छीन सभी कुछ ले गया,जीवन का भूचाल
ख्याति,प्रतिष्ठा सब मिटी,ऐसी चल दी चाल

झूठ भी सच लगने लगा,किया झूठ फैलाव
सच घायल हो रो रहा,दिया झूठ ने घाव

कैसे झूठे लोग हैं,जिन्हे नही अनुमान
एक झूठ ने आपके,छीना मेरा मान

जीवन देखो किस तरह,बदले पल में रंग
हाथी को भी चीटियां,करने लगती तंग
                      शालिनी शर्मा





2122 2122 2122 2122
हर तरफ बस हो उजाला,ये कहा है चांदनी ने
हार मत मानो कभी भी,ये कहा है जिन्दगी ने

है बहुत फैला अन्धेरा,राह में दीपक जलाओ
ज्ञान को आगे बढ़ाओ,ये कहा है रोशनी ने

ऊपरी तन को सजाया,पर दिलो में द्वेष क्यों है
द्वेष को मन से हटाओ,ये कहा है सादगी ने

नाचते है मोर वन में,फूल तितली को बुलाता
बाग,बादल ही सुहाता,ये कहा है मोरनी ने

हूँ सभी जीवो से बढ़कर,मैं रहूंगा बस यहां पर
नाश करना ही सुहाता,ये कहा है आदमी ने

कुछ दिनो का है बसेरा,एक दिन सब छोड़ जाना
साथ जायेगा नही कुछ,ये कहा है बन्दगी ने
                      शालिनी शर्मा



गीतिका
विधाता छन्द
1222 1222 1222 1222
बहारो पर किसी की थी नजर, पतझड़ बुला लाया
उसे खुशियां नहीं भायी सभी को वो रूला आया

किसी का भी नही सम्मान होता देख वो पाता
बिना ही बात महफिल से उठा,वो मुंह फुला लाया

उसे  साजिश ही भाती है वो बस साजिश रचाता है
दिया धोखा उसे, उसकी जगी किस्मत सुला आया

किसी की आँख के आंसू यही रोकर बताते हैं
नजर में पाप था उसकी,मगर चेहरा धुला लाया

कहा जो भी उसे सुनता रहा, बोले बिना चुप चुप
उसे रिश्ता बचाना था, सभी लांछन भुला आया

उसे  मालूम  था  कोई  नही  परिणाम आयेगा
मगर फिर भी सुलह का वो नया रस्ता खुला लाया
                              शालिनी शर्मा


चाँद से मिलने  को  हम बेताब हैं
कुछ ही दूरी पर खड़ा महताब है
कब से  छूने  की  तमन्ना थी उसे
पूरा होने  वाला अब ये  ख्वाब है



महंगा है टमाटर आज अरेरररररररेरेरेरे न बाबा
सस्ता लगता है प्याज अरेरररररररेरेरेरे न बाबा 
 रोगो की है भरमार
मिलता न हमें उपचार 
महंगा है बहुत इलाज अरेरररररररेरेरेरे न बाबा

घर में हैं सभी बीमार
मिलता न सही उपचार
महंगा है बहुत इलाज अरेररररररेरेरे रे न बाबा



मत्तगयंद सवैया - 211 211 211 211 211 211 211 22
दीप जला कर दूर करो तम,और सदा गम दूर भगाओ
दीन दुखी जन देख,उन्हे मत छोड़ चलो मत हाथ छुड़ाओ 
जैव अजैव सुधि सब की लो, प्यार करो सबको दुलराओ
चीज सम्भाल धरो, सब चीजन का तुम मोल सबै बतलाओ
                   शालिनी शर्मा

मत्तगयंद सवैया - 211 211 211 211 211 211 211 22

 राम कुटी पर, देख सिया मृग,भूल गई सब राजदुलारी
बैठ गई करने जिद मांगत,चाह करे मृग की सुकुमारी
नाथ मनोरथ पूर्ण करो मृग देह दिखे है बड़ी मनोहारी
राम कहें मत मांग इसे,मृग भूल सिया,सुन बात हमारी
                   शालिनी शर्मा

मत्तगयंद सवैया - 211 211 211 211 211 211 211 22
काम करे न विवेक, बुरा  जब  वक्त  करीब  हमारे आये
कोन घड़ी कब आन पड़े़ दुख,जान कहां हम ये सब पाये
काल कभी न बुरा टलता,कब कोन घड़ी सब छीन मिटाये
भाग लिखा कब मेट सके,हम हाथ लकीर मिटा कब पाये
                                 शालिनी शर्मा


दोहे
ख्याल नही  तेरा जिसे ,नहीं जिसे परवाह 
छोड़ उसे तू सोचना,मत कर उसकी चाह

कैसे निर्धन को यहां,मिले उचित उपचार
फीस बिना खुलते नहीं,अस्पताल के द्वार

भाईचारा अब कहां, कहां प्रेम,  सद्भाव
द्वेष,क्लेश हर ओर है,हैं खंजर के घाव

अस्त्र शस्त्र वो बेचते,चाहें हिंसा रोज
शान्ति लाने को चली,हथियारो की फोज

अंहकार किस बात का,होगा राख शरीर
अंत सभी का एक है,राजा रंक फकीर 

जब भी खुद से बात की,था एकाकी दोर      
दर्पण   पूछे  प्रश्न  अब,  ये तू  है  या और

मीत पुराना देखकर,बेकाबू जज्बात
हाल पूछते ही हुई,आँखो से बरसात   

बदले बदले खेत हैं,सूखे सूखे पात
धरती बंजर सी दिखे, तीखी है बरसात       
            शालिनी शर्मा


ताटंक छन्द (16+14)
क्यों अंग्रेजी बोल रहे हम,भूल करें नादानी में 
हिन्दी भाषा इतनी सुन्दर,रस भर देती वानी में

तोड़ गुलामी बन्धन छोड़ो ,अंग्रेजी मत बोलो तुम
समझ सकेगें हम भावो को,भाषा हिन्दुस्तानी में

सूर,बिहारी,तुलसी,मीरा,हिन्दी के सिरमौर यहाँ
छन्दो का रस बस मिलता है,हिन्दी मधुर सुहानी में

कैसे पुरवा की मस्ती को,अंग्रेजी में गायेगें
हिन्दी में लय ताल मिले जब,बहती नदी रवानी में

हिन्दी दिल के तार जोड़ती,सुनो आरती हिन्दी में
प्यार मिला दादी,नानी का,बचपन सुनी कहानी में

प्रेम की अनभूति है हिन्दी,और विरह का गीत सृजन
हिन्दी में ही गीत प्रणय के ,गायें सभी जवानी में
                                      शालिनी शर्मा

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