दोहे शालिनी शर्मा




शालिनी शर्मा की कविता

चुप रहना भी हर समय,नही ठीक है मीत
सच को सच बोलो सदा,बिना हुए भयभीत
गलत बात का धीर धर,सदा करो प्रतिरोध 
हम कायर है मौन से,होता यही प्रतीत
                        शालिनी शर्मा


 जिधर देखिए हर तरफ ,हैं दुख के अम्बार
सुख,सन्तुष्टि चैन नही,दुखी सभी परिवार 

जीवन जीने के लिए,घर घर हाहाकार 
आँखों में पानी नही,सांत्वना बेकार

छप्पर आंधी में उड़ा,बारिश अपरम्पार 
और न संकट भेज प्रभु,अस्त व्यस्त घर द्वार 

कोन कहे सब ठीक है,क्या सब हैं खुशहाल
दुख चिन्ता से त्रस्त माँ,क्या खायेगा लाल

पीड़ा,दुख,लाचारियां,है बेबसी अपार
संघर्षो की जंग में,सिर्फ हार ही हार

 दर्द बात करता अगर,कहता उनका  हाल
जिनके भूख,अभाव से,जिस्म बने कंकाल
                         शालिनी शर्मा 


गीत
 रिमझिम बरसे सावन आया
सावन में झूले डाले हैं
कजरी,मल्हार के गीत सुनो
ये गीत मधुर स्वर वाले हैं

सब मोर बाग में नाच रहे
और गीत सुनाये कोयल सुन
अमिया की डाल पर बैठ के खग
खाते हैं मीठे फल चुनचुन
मौसम मतवाला धरती पर
जाये नभ फर घन काले हैं। 
रिमझिम बरसे-------

खेतो में धान,कपास,मूंग,
मक्का कृषको ने बो दी है
नदियां इठलाती हैं,लहरो ने
सहनशीलता खो दी है
नये फूल खिले महका मधुबन
चूंजो ने पंख निकाले हैं। 
रिमझिम बरसे-------

इस बार मगर सूखा सावन
सावन क्यों नहीं सुहाना है
क्यों रूठ गया है मानसून
गर्मी से दुखी जमाना है
है उमस,पसीना,बेचैनी
राही के पग में छाले हैं।
रिमझिम बरसे -------
                  शालिनी शर्मा


गर्मी इतनी पड़ रही,सारे जन बेचैन
दो बूंदो की आस में,नभ तकते हैं नैन
पंछी व्याकुल प्यास से,दिखता कहीं न नीर
कटे वृक्ष भी दर्द से,सिसक रहे दिन रैन
                      शालिनी शर्मा


सड़को पर पानी भरा,जल का नही निकास
बारिश भी दुख दे रही,कैसा हुआ विकास
                         शालिनी शर्मा

Comments